आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "KHalvati-e-piir-e-KHaraabaat"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "KHalvati-e-piir-e-KHaraabaat"
ग़ज़ल
तुझ को क्या फ़क़्र में राहत है कि शाही में फ़राग़
तू तो है ख़ल्वती-ए-पीर-ए-ख़राबात ऐ 'जोश'
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
फ़रोग़-ए-बादा से रौशन हुई तक़दीर-ए-मय-ख़ाना
कि है हर बादा-कश रौशन चराग़-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
हम जो मस्जिद से दर-ए-पीर-ए-मुग़ाँ तक पहुँचे
बढ़ के ये बात ख़ुदा जाने कहाँ तक पहुँचे
साहिर सियालकोटी
ग़ज़ल
रिंदों में यूँ ही बख़्शिश-ए-पीर-ए-मुग़ाँ रहे
हो लाख क़हत फिर भी ये दरिया रवाँ रहे
अब्दुस्सलाम नदवी
ग़ज़ल
जिगर बरेलवी
ग़ज़ल
याँ बादा-ए-अहमर के छलकते हैं जो साग़र
ऐ पीर-ए-मुग़ाँ देख कि है सारी दुकाँ सुर्ख़