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ग़ज़ल
मुरक़्क़ा' पहले अपना आइना-ख़ाने में रख देना
यही आईना-ख़ाना दिल के काशाने में रख देना
मोहम्मद उमर
ग़ज़ल
है आईना-ख़ाने में तिरा ज़ौक़-फ़ज़ा रक़्स
करते हैं बहुत से तिरे हम-शक्ल जुदा रक़्स
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
गए थे बन-सँवर के आइना-ख़ाने में वो इक दिन
किसे मालूम है फिर आइना-ख़ाने पे क्या गुज़री