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ग़ज़ल
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
अहमद सलमान
ग़ज़ल
अब किसी में अगले वक़्तों की वफ़ा बाक़ी नहीं
सब क़बीले एक हैं अब सारी ज़ातें एक सी
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
मैं खिला हूँ तो उसी ख़ाक में मिलना है मुझे
वो तो ख़ुश्बू है उसे अगले नगर जाना है