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ग़ज़ल
दर्द से मेरे है तुझ को बे-क़रारी हाए हाए
क्या हुई ज़ालिम तिरी ग़फ़लत-शिआरी हाए हाए
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मिली है राह-ए-मोहब्बत में ए'तिबार की छाँव
सुलगते सहरा में है साथ तेरे प्यार की छाँव
साजिद अख़्तर महशर अंसारी
ग़ज़ल
दर्द-ओ-ग़म का आप को भी तज्रबा हो जाएगा
ज़ीस्त की जब तल्ख़ियों से सामना हो जाएगा