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ग़ज़ल
जितने दुख थे जितनी उमीदें सब से बराबर काम लिया
मैं ने अपने आइंदा की इक तस्वीर बनाने में
अज़्म बहज़ाद
ग़ज़ल
किसे मा'लूम क्या होगा मआल आइंदा नस्लों का
जवाँ हो कर बुज़ुर्गों की रिवायत छोड़ दी हम ने