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ग़ज़ल
न मेरी बात ही समझा न मेरा मुद्दआ' समझा
सुना क़िस्सा मगर क्या जाने उस ज़ालिम ने क्या समझा
अनवारुल हक़ अहमर लखनवी
ग़ज़ल
चलो दिल की कहानी को मुकम्मल कर दिया जाए
बची है जो जगह ख़ाली उसे भी भर दिया जाए
राघवेंद्र द्विवेदी
ग़ज़ल
न जाएगा किसी के गेसुओं का ख़म-ब-ख़म होना
बहुत मुश्किल है मेरे शौक़ की उलझन का कम होना
अनवारुल हक़ अहमर लखनवी
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़