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ग़ज़ल
पहुँचना था जो अर्ज़-ए-हाल को अर्श-ए-मुअज़्ज़म तक
कई शब से वही नाला मिरे लब तक नहीं आता
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मिलने को मिलेगा बिल-आख़िर ऐ 'अर्श' सुकून-ए-साहिल भी
तूफ़ान-ए-हवादिस से लेकिन बच जाए सफ़ीना मुश्किल है
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
बुलंदी नाम से ऐ 'अर्श' मिल सकती नहीं तुझ को
ज़मीन-ए-शेर पर औज-ए-सुख़न से आसमाँ हो जा
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
हज़ारों रंज इस में 'अर्श' लाखों कुल्फ़तें इस में
मोहब्बत को सुरूद-ए-ज़िंदगानी कौन कहता है
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
'अर्श' ऊँचा था सर-ए-फ़न कभी या फ़ख़्र ओ ग़ुरूर
अब तह-ए-तेग़ है गर्दन ये कोई क्या जाने
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
कहने को तो ऐ 'अर्श' सुख़न-संज हैं हम भी
हक़ ये है कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
तुम लुत्फ़ को जौर बताते हो तुम नाहक़ शोर मचाते हो
तुम झूटी बात बनाते हो ऐ 'अर्श' ये अच्छी बात नहीं