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ग़ज़ल
ये वक़्त आने पे अपनी औलाद अपने अज्दाद बेच देगी
जो फ़ौज दुश्मन को अपना सालार गिरवी रख कर पलट रही है
तहज़ीब हाफ़ी
ग़ज़ल
इस सियासत में मियाँ आबाद हो जाने के बा'द
मर गए किरदार ज़िंदाबाद हो जाने के बा'द
बिलाल सहारनपुरी
ग़ज़ल
लगे क्यूँकर न दिल कुंज-ए-क़फ़स में अंदलीबों का
जहाँ में आज-कल आबाद गर कुछ है तो ज़िंदाँ है