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ग़ज़ल
हज़ारों बार कह कर बेवफ़ा को बा-वफ़ा मैं ने
बताया है ज़माने को वफ़ा का रास्ता मैं ने
दिवाकर राही
ग़ज़ल
दयार-ए-हुस्न में पाबंदी-ए-रस्म-ए-वफ़ा कम है
बहुत कम है बहुत कम है ब-हद्द-ए-इंतिहा कम है
मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल
किसी ने बा-वफ़ा समझा किसी ने बेवफ़ा समझा
मुझे ग़ैरों ने क्या समझा मुझे अपनों ने क्या समझा
डी. राज कँवल
ग़ज़ल
अब तो फिरता है 'वफ़ा' ख़ाना-ब-दोशों की तरह
जो मिलीं थीं उस को विर्से में वो जागीरें जलीं
वफ़ा सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
हमारा प्यार रुस्वा-ए-ज़माना हो नहीं सकता
न इतने बा-वफ़ा हम हैं न इतने बा-वफ़ा तुम हो
सरशार सैलानी
ग़ज़ल
बना के ख़ुद को मोहब्बत में बा-वफ़ा रखिए
ग़मों का दौर भी आए तो हौसला रखिए