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ग़ज़ल
शाम हुए ख़ुश-बाश यहाँ के मेरे पास आ जाते हैं
मेरे बुझने का नज़्ज़ारा करने आ जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
साल-हा-साल से ख़ुश-बाश जो हूँ सहरा में
आलम-ए-हू को समझता हूँ मैं वीराना-ए-इश्क़