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ग़ज़ल
बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है! चौका बासन चिमटा फुकनी जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
ब्याज में खेत न ज़ेवर न वो धन चाहता है
सूद-ख़ोर आज तो बेवा का बदन चाहता है