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ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
पड़ गई पाँव में तक़दीर की ज़ंजीर तो क्या
हम तो उस को भी तिरी ज़ुल्फ़ का बल कहते हैं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ों की तो फ़ितरत ही है लेकिन मिरे प्यारे
ज़ुल्फ़ों से ज़ियादा तुम्हीं बल खाए चलो हो
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
जब यार ने उठा कर ज़ुल्फ़ों के बाल बाँधे
तब मैं ने अपने दिल में लाखों ख़याल बाँधे