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ग़ज़ल
हर मज़हब का एक ही कहना जैसा मालिक रक्खे रहना
जब तक साँसों का बंधन है जीते जाओ सोचो मत
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
दिल तोड़ के जाने वाले सुन दो और भी रिश्ते बाक़ी हैं
इक साँस की डोरी अटकी है इक प्रेम का बंधन रहता है
क़य्यूम नज़र
ग़ज़ल
सारे रिश्ते सारे बंधन प्यार के अब तक क़ाएम है
उन को अपने दिल से भुलाएँ ऐसी कोई बात नहीं
सय्यद आरिफ़ अली
ग़ज़ल
प्यार के बंधन ख़ून के रिश्ते टूट गए ख़्वाबों की तरह
जागती आँखें देख रही थीं क्या क्या कारोबार हुए
बशर नवाज़
ग़ज़ल
एक शब के टुकड़ों के नाम मुख़्तलिफ़ रखे
जिस्म-ओ-रूह का बंधन सिलसिला है ख़्वाबों का
कृष्ण बिहारी नूर
ग़ज़ल
ज़ंजीरों के बदले अब भी गहने पाती हूँ जैसे
सदियों से ये जब्र के बंधन बीच हमारे उस के थे
कहकशाँ तबस्सुम
ग़ज़ल
रोज़-ओ-शब के बंधन खोल के वक़्त का दरिया चल निकले
आप कहें तो दानाई है हम कह दें नादानी है
अम्बरीन सलाहुद्दीन
ग़ज़ल
उस ने प्यार के सारे बंधन इक लम्हे में तोड़ दिए
जिस की ख़ातिर रुस्वा हैं हम इस बे-दर्द ज़माने में