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ग़ज़ल
काग़ज़ काग़ज़ धूल उड़ेगी फ़न बंजर हो जाएगा
जिस दिन सूखे दिल के आँसू सब पत्थर हो जाएगा
क़ैसर-उल जाफ़री
ग़ज़ल
जो सुन लिया कभी बच्चे से हर्फ़-ए-आवारा
ज़बाँ पे रख दिया माँ ने दहकता अंगारा
सय्यद क़मर हैदर क़मर
ग़ज़ल
शहर-ए-ग़ज़ल में धूल उड़ेगी फ़न बंजर हो जाएगा
जिस दिन सूखे दिल के आँसू सब पतझड़ हो जाएगा
क़ैसर-उल जाफ़री
ग़ज़ल
क्या लिए जाते हो चुपके से छुपा कर हाथ में
दिल नहीं है गर तो क्या है बंदा-पर्वर हाथ में
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
नमी हो जिस की आँखों में वो बंजर हो नहीं सकता
जिसे मिट्टी से निस्बत हो वो पत्थर हो नहीं सकता
नवीन जोशी
ग़ज़ल
चलाए किस क़दर बंजर ज़मीनों में भी हल हम ने
मगर क़ीमत तो देखो आज तक पाया न फल हम ने