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ग़ज़ल
बरफ़रोख़्ता रुख़ है उस का किस ख़ूबी से मस्ती में
पी के शराब शगुफ़्ता हुआ है उस नौ-गुल पे बहार है आज
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
ख़ुर्शीद का मुँह है कि तरफ़ हो सके उस से
यानी वो बर-अफ़रोख़्ता रुख़्सार ग़ज़ब है