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ग़ज़ल
सजा कर लख़्त-ए-दिल से कश्ती-ए-चश्म-ए-तमन्ना को
चला हूँ बारगाह-ए-इश्क़ में ले कर ये नज़राना
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
'अदम' ख़राबात की सहर है कि बारगाह-ए-रुमूज़-ए-हस्ती
इधर भी सूरज निकल रहा है उधर भी सूरज निकल रहा है
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
ये जहाँ बारगह-ए-रित्ल-ए-गिराँ है साक़ी
इक जहन्नम मिरे सीने में तपाँ है साक़ी
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
इश्क़ की सादा-दिली है हर तरफ़ छाई हुई
बारगाह-ए-हुस्न में हर आरज़ू नौ-ख़ेज़ है
अकबर हैदरी कश्मीरी
ग़ज़ल
ऐ 'दिल' इस बारगह-ए-हुस्न में हूँ जब से मुक़ीम
इश्क़ शायद कि मिरी तब-ए-रवाँ रक़्स में है
दिल अय्यूबी
ग़ज़ल
मेरी आदत है वफ़ा दिल में शकेबाई है
बात यूँ बारगह-ए-नाज़ में बन आई है
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
मक़्बूल-ए-बारगाह-ए-रिसालत हों मेरे शे'र
सरमाया-ए-नजात ग़ज़ल में समेट लूँ
चंद्र प्रकाश जौहर बिजनौरी
ग़ज़ल
बज़्म-ए-दोशीं को करो याद कि इस का हर रिंद
रौनक़-ए-बार-गह-ए-पीर-ए-मुग़ाँ गुज़रा है