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ग़ज़ल
मस्त-ओ-बे-ख़ुद तेरे मय-ख़ाने का बाम-ओ-दर बने
साक़िया गर तेरी चश्म-ए-मस्त का साग़र बने
ख़ुशी मोहम्मद नाज़िर
ग़ज़ल
किसी को देख कर बे-ख़ुद दिल-ए-काम हो जाना
उसी को लोग कहते हैं ख़याल-ए-ख़ाम हो जाना
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
है बे-ख़ुद वस्ल में दिल हिज्र में मुज़्तर सिवा होगा
ख़ुशी जिस घर की ऐसी है वहाँ का रंज क्या होगा
रशीद लखनवी
ग़ज़ल
मिलते हैं कहाँ ख़ुद को हम बे-ख़ुद-ए-ग़म तन्हा
हम से भी मिला देना मिल जाएँ जो हम तन्हा
शमीम करहानी
ग़ज़ल
देख कर इक जल्वे को तेरे गिर ही पड़ा बे-ख़ुद हो मूसा
उन आँखों के सदक़े जाऊँ जो हैं हर-दम महव-ए-तमाशा
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
बे-ख़ुद हैं तेरे जल्वा-ए-तौबा-शिकन से हम
हैं बे-नियाज़ बादा-ए-रंज-ओ-मेहन से हम