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ग़ज़ल
तिश्नगी में लब भिगो लेना भी काफ़ी है 'फ़राज़'
जाम में सहबा है या ज़हराब मत देखा करो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
कुछ तो रेत की प्यास बुझाओ जनम जनम की प्यासी है
साहिल पर चलने से पहले अपने पाँव भिगो लेना
बशीर बद्र
ग़ज़ल
बहता आँसू एक झलक में कितने रूप दिखाएगा
आँख से हो कर गाल भिगो कर मिट्टी में मिल जाएगा
अहमद मुश्ताक़
ग़ज़ल
कुछ तो एहसास-ए-मोहब्बत से हुईं नम आँखें
कुछ तिरी याद के बादल भी भिगो जाते हैं
अमीता परसुराम मीता
ग़ज़ल
'रईस' अश्कों से दामन को भिगो लेते तो अच्छा था
हुज़ूर-ए-दोस्त कुछ गुस्ताख़ हो लेते तो अच्छा था