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ग़ज़ल
शब-ए-ग़म न पूछ कैसे तिरे मुब्तला पे गुज़री
कभी आह भर के गिरना कभी गिर के आह भरना
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
वो तो ख़ुश्बू है हर इक सम्त बिखरना है उसे
दिल को क्यूँ ज़िद है कि आग़ोश में भरना है उसे
सदा अम्बालवी
ग़ज़ल
क़ैद-ए-गेसू से भला कौन रहेगा आज़ाद
तेरी ज़ुल्फ़ों का जो शानों पे बिखरना है यही
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
ये कुछ बहरूप-पन देखो कि बन कर शक्ल दाने की
बिखरना सब्ज़ होना लहलहाना फिर सिमट जाना