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ग़ज़ल
फूल कुचले जा रहे थे बाग़बाँ चीख़ा किया
ये ज़मीं रोती रही वो आसमाँ चीख़ा किया
ज़ोहेब फ़ारूक़ी अफ़रंग
ग़ज़ल
चाहता हूँ पहले ख़ुद-बीनी से मौत आए मुझे
आप को देखूँ ख़ुदा वो दिन न दिखलाए मुझे
मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
ग़ज़ल
बिना मंज़िल के रस्तों का सफ़र अपना रहा है
मिरे दिल में वो यक-तरफ़ा मोहब्बत ला रहा है
उमूद अबरार अहमद
ग़ज़ल
हुजूम-ए-रंज-ओ-अलम है ये नीम-जाँ के लिए
जफ़ा वो करते हैं 'आशिक़ पे इम्तिहाँ के लिए