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ग़ज़ल
'फ़ानी' जिस में आँसू क्या दिल के लहू का काल न था
हाए वो आँख अब पानी की दो बूँदों को तरसती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
यारो कुछ तो ज़िक्र करो तुम उस की क़यामत बाँहों का
वो जो सिमटते होंगे उन में वो तो मर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
रोक सको तो पहली बारिश की बूंदों को तुम रोको
कच्ची मिट्टी तो महकेगी है मिट्टी की मजबूरी
मोहसिन भोपाली
ग़ज़ल
हम भी लै को तेज़ करेंगे बूँदों की बौछार के साथ
पहला सावन झूलने वालो तुम भी पेंग बढ़ा देना
रईस फ़रोग़
ग़ज़ल
दिल में छेद कर ख़ून की बूंदों से हर रेज़ा भरे
टूट कर बन जाएँ बूँदे की कटारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
पैहम दस्तक पर बूँदों की आख़िर उस ने ध्यान दिया
खुल गया धीरे धीरे दरीचा पहली पहली बारिश में
ख़ालिद मोईन
ग़ज़ल
तुम्हारे जश्न को जश्न-ए-फ़रोज़ाँ हम नहीं कहते
लहू की गर्म बूँदों को चराग़ाँ हम नहीं कहते
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
फिर यादें घिर घिर कर आईं फिर सुलगे बन ज़ख़्मों के
फिर बूंदों ने आग लगाई फिर सावन सरगर्म हुआ
ज़ुहूर नज़र
ग़ज़ल
उस का मिलना धूल-भरे मौसम में बूंदों जैसा था
सब्ज़ा बन कर फूट रहा है जो भी अंदर सूखा था