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ग़ज़ल
बुरे अच्छे हों जैसे भी हों सब रिश्ते यहीं के हैं
किसी को साथ दुनिया से कोई ले कर नहीं जाता
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
बहुत बुरे हो मिरी दिखावे की नींद को भी तुम अस्ल समझे
कहीं से सीखो पियार करना मुझे जगाओ मुझे मनाओ
आमिर अमीर
ग़ज़ल
जो ज़माने को बुरा कहते हैं ख़ुद हैं वो बुरे
काश ये बात तिरे गोश-ए-गिराँ तक पहुँचे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
अच्छे अच्छों पे बुरे दिन हैं लिहाज़ा 'फ़ारिस'
अच्छे होने से तो अच्छा है बुरा हो जाना