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ग़ज़ल
बाँट के अपना चेहरा माथा आँखें जाने कहाँ गई
फटे पुराने इक एल्बम में चंचल लड़की जैसी माँ
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
कहीं आबलों के भँवर बजें कहीं धूप-रूप बदन सजें
कभी दिल को थल का मिज़ाज दे कभी चश्म-ए-तर को चनाब कर
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
लिटा के सीने पे चंचल को प्यार से हर-दम
मैं गुदगुदाता था हँस हँस वो ज़ोफ़ खोता था
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मेरी उम्मीदों से लिपटे रहे अंदेशों के साँप
उम्र हर दौर में कटती रही चंदन बन के
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
ज़िद्दी वहशी अल्लहड़ चंचल मीठे लोग रसीले लोग
होंट उन के ग़ज़लों के मिसरे आँखों में अफ़्साने थे
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
गेहूँ चावल बाँटने वाले झूटा तौलें तो क्या बोलें
यूँ तो सब कुछ अंदर बाहर जितना तेरा उतना मेरा
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
बरखा की तो बात ही छोड़ो चंचल है पुर्वाई भी
जाने किस का सब्ज़ दुपट्टा फेंक गई है धानों पर