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ग़ज़ल
बोलने की भी यहाँ क़ीमत चुकाई जा रही है
दिन दहाड़े सच की अब गर्दन दबाई जा रही है
टी के सिंह काशिफ़
ग़ज़ल
सच तो ये है दिन-दहाड़े जिन का होना है मुहाल
पर्दे पर्दे में वो सारे काम कर जाती है रात
साजिद सजनी लखनवी
ग़ज़ल
देता हूँ तुम को ख़ुश्की-ए-मिज़्गाँ की मैं दुआ
मतलब ये है कि दामन-ए-पुर-नम मिले तुम्हें
जौन एलिया
ग़ज़ल
कहीं तार-ए-दामन-ए-गुल मिले तो ये मान लें कि चमन खिले
कि निशान फ़स्ल-ए-बहार का सर-ए-शाख़-सार कोई तो हो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
बस अब तो दामन-ए-दिल छोड़ दो बेकार उम्मीदो
बहुत दुख सह लिए मैं ने बहुत दिन जी लिया मैं ने