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ग़ज़ल
अब वही हर्फ़-ए-जुनूँ सब की ज़बाँ ठहरी है
जो भी चल निकली है वो बात कहाँ ठहरी है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सब क़त्ल हो के तेरे मुक़ाबिल से आए हैं
हम लोग सुर्ख़-रू हैं कि मंज़िल से आए हैं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई
दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ये किस ख़लिश ने फिर इस दिल में आशियाना किया
फिर आज किस ने सुख़न हम से ग़ाएबाना किया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
याद का फिर कोई दरवाज़ा खुला आख़िर-ए-शब
दिल में बिखरी कोई ख़ुशबू-ए-क़बा आख़िर-ए-शब
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलम
तिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
क़र्ज़-ए-निगाह-ए-यार अदा कर चुके हैं हम
सब कुछ निसार-ए-राह-ए-वफ़ा कर चुके हैं हम