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ग़ज़ल
कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से
जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ख़ुदी हो इल्म से मोहकम तो ग़ैरत-ए-जिब्रील
अगर हो इश्क़ से मोहकम तो सूर-ए-इस्राफ़ील
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
थी तितलियों के तआ'क़ुब में ज़िंदगी मेरी
वो शहर क्या हुआ जिस की थी हर गली मेरी
अख़्तर होशियारपुरी
ग़ज़ल
वो नहीं हूँ मैं कि जिस पर कोई अश्क-बार होता
कभी शम्अ' भी न रोती जो मिरा मज़ार होता
साक़िब लखनवी
ग़ज़ल
न मैं हाल-ए-दिल से ग़ाफ़िल न हूँ अश्क-बार अब तक
मिरी बेबसी पे भी है मुझे इख़्तियार अब तक
इरफ़ान अहमद मीर
ग़ज़ल
मज़ा अलम में नहीं लुत्फ़ सोज़-ए-जाँ में नहीं
सबब ये है कि तपिश पर्दा-ए-फ़ुग़ाँ में नहीं