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ग़ज़ल
मिस्रा-ए-'सर्वत' ने 'जोशिश' मस्त ओ दीवाना किया
दश्त-दर-दश्त बेशा बेशा शीशा शीशा है शराब
जोशिश अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
तुझे भी हुस्न-ए-मुत्लक़ का अभी दीदार हो जाए
मिरे महबूब के जो रू-ब-रू इक बार हो जाए
अहया भोजपुरी
ग़ज़ल
जनाज़ा धूम से उस आशिक़-ए-जाँ-बाज़ का निकले
तमाशे को अजब क्या वो बुत-ए-दम-बाज़ आ निकले
रंजूर अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
हिज्र का ग़म भी नहीं वस्ल की पर्वा भी नहीं
दिल भी पहलू में नहीं दिल की तमन्ना भी नहीं
मानी जायसी
ग़ज़ल
सुब्ह-दम कैसे मिले महफ़िल में परवाने की ख़ाक
सुर्मा-ए-चश्म-ए-वफ़ा केशाँ है दीवाने की ख़ाक
पाशा रहमान
ग़ज़ल
बादा-ए-वहशत-असर से मस्त वीराने में था
एक आलम बे-ख़ुदी का तेरे दीवाने में था