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ग़ज़ल
गहरी काली आँखों वाली देन किसी अवतार की है
शहर नहीं मा'लूम मुझे पर लड़की फोटोहार की है
इमरान आवान
ग़ज़ल
क्या क्या मज़े से रात की अहद-ए-शबाब में
छोड़ूँ न उम्र-ए-रफ़्ता गर आ जाए ख़्वाब में
मीर तस्कीन देहलवी
ग़ज़ल
लड़ाते ही नज़र साक़ी से चकराता है सर अपना
ये वो मय है कि पीते ही दिखाती है असर अपना