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ग़ज़ल
दिल में जो बसाई थी वो तस्वीर नहीं है
ये हुस्न मिरे ख़्वाबों की ता'बीर नहीं है
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
ग़ज़ल
कहाँ शिकवा ज़माने का पस-ए-दीवार करते हैं
हमें करना है जो भी हम सर-ए-बाज़ार करते हैं