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ग़ज़ल
इश्क़ की हालत कुछ भी नहीं थी बात बढ़ाने का फ़न था
लम्हे ला-फ़ानी ठहरे थे क़तरों की तुग़्यानी थी
जौन एलिया
ग़ज़ल
उम्र है फ़ानी उम्र है बाक़ी इस की कुछ पर्वा ही नहीं
तू ये कह दे वक़्त लगेगा कितना आने जाने में
मीराजी
ग़ज़ल
मिरे दिल को रास आया न जुमूद-ओ-ग़ैर-फ़ानी
मिली राह-ए-ज़िंदगानी मुझे ख़ार से निकल कर
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मता-ए-हुस्न-ओ-उल्फ़त पर यक़ीं कितना था दोनों को
यहाँ हर चीज़ फ़ानी है न तुम समझे न हम समझे
सबा अकबराबादी
ग़ज़ल
'फ़ानी' जिस में आँसू क्या दिल के लहू का काल न था
हाए वो आँख अब पानी की दो बूँदों को तरसती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
मिरा ग़म रुला चुका है तुझे बिखरी ज़ुल्फ़ वाले
ये घटा बता रही है कि बरस चुका है पानी