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ग़ज़ल
ये जनाब-ए-शैख़ का फ़ल्सफ़ा है अजीब सारे जहान से
जो वहाँ पियो तो हलाल है जो यहाँ पियो तो हराम है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मुबारक हो ज़ईफ़ी को ख़िरद की फ़लसफ़ा-रानी
जवानी बे-नियाज़-ए-इबरत-ए-अंजाम है साक़ी
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
हम को है मालूम सब रूदाद-ए-इल्म-ओ-फ़ल्सफ़ा
हाँ हर ईमान-ओ-यक़ीं वहम-ओ-गुमाँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
वो जिंस नहीं ईमान जिसे ले आएँ दुकान-ए-फ़ल्सफ़ा से
ढूँडे से मिलेगी आक़िल को ये क़ुरआँ के सिपारों में
ज़फ़र अली ख़ाँ
ग़ज़ल
उस का इक अदना करिश्मा रूह वो इतना 'अजीब
'अक़्ल इस्ति'जाब में है फ़ल्सफ़ा हैरत में है
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
मुझे समझना भला सब की दस्तरस में कहाँ
कोई कहानी मैं थोड़ी हूँ फ़ल्सफ़ा हूँ मैं
दीपक प्रजापति ख़ालिस
ग़ज़ल
उस एक कच्ची सी उम्र वाली के फ़लसफ़े को कोई न समझा
जब उस के कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले तो लोग समझे
अहमद सलमान
ग़ज़ल
न तो आश्ना न ही अजनबी न कोई बदन है न रूह ही
यही ज़िंदगी का है फ़ल्सफ़ा ये जो फ़ल्सफ़ा है ये ठीक है
भवेश दिलशाद
ग़ज़ल
ख़ून-ए-जिगर में फ़िक्र की गहराइयाँ भी हैं
गर है मिज़ाज-ए-फ़ल्सफ़ा-दानी ग़ज़ल सुनो