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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
जहाँ लाखों मोहब्बत के चराग़ों से उजाला हो
'फ़रह' रौशन किसी दिल का वो दर अब तक नहीं आया