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ग़ज़ल
क्या कोई याद तिरे दिल को दुखाती है हवा
सर्द सन्नाटे में क्यूँ शोर मचाती है हवा
राशिद अनवर राशिद
ग़ज़ल
तड़प उठता हूँ यादों से लिपट कर शाम होते ही
मुझे डसता है मेरा सर्द बिस्तर शाम होते ही
राशिद अनवर राशिद
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़