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ग़ज़ल
ये शुऊ'र 'नजमी' ये फ़िक्र-ओ-फ़न तिरी शाइरी का ये बाँकपन
ये तसव्वुरात की अंजुमन नई काएनात बसा गई
सलाम नज्मी
ग़ज़ल
शोहरा-ए-आफ़ाक़ है इस का जमाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न
सारी अस्नाफ़-ए-सुख़न में है जहाँ-दीदा ग़ज़ल
नाशाद औरंगाबादी
ग़ज़ल
उड़ाना मैं ने है ऊँची उड़ान शाहीं को
तो फ़िक्र-ओ-फ़न से मैं भी बाल-ओ-पर बनाता हूँ
अमीर हम्ज़ा सल्फ़ी
ग़ज़ल
जावेद उल्फ़त
ग़ज़ल
लो अब तो अहल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न भी कहते हैं सर-ए-महफ़िल
तेरे अशआ'र में ऐ 'शौक़' शोख़ी है रवानी है
शौक़ जालंधरी
ग़ज़ल
न है तख़य्युल न है तग़ज़्ज़ुल मिरे सुख़न में
हो फ़िक्र-ओ-फ़न जिस में शा'इरी का तो मैं उसी का
अनीस शाह अनीस
ग़ज़ल
बाक़र मेहदी
ग़ज़ल
अगर तुम रोक दो इज़हार-ए-लाचारी करूँगा
जो कहनी है मगर वो बात मैं सारी करूँगा
अब्दुर्राहमान वासिफ़
ग़ज़ल
इम्तिहाँ हम ने दिए इस दार-ए-फ़ानी में बहुत
रंज खींचे हम ने अपनी ला-मकानी में बहुत