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ग़ज़ल
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
मिले मुझ को ग़म से फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इशरत-ए-शबाना
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
ऐश से क्यूँ ख़ुश हुए क्यूँ ग़म से घबराया किए
ज़िंदगी क्या जाने क्या थी और क्या समझा किए