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ग़ज़ल
होश-ओ-ख़िरद क्या जोश-ए-जुनूँ क्या उल्टी गंगा बहती है
क्या फ़रज़ाने कैसे सियाने यारो सब दीवाने हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
रोज़ ही पीना रोज़ पिलाना रोज़ ग़मों से टकराना
इक दिन मय को भूल के आओ गंगा-जल की बात करें