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ग़ज़ल
ये दिल ये पागल दिल मिरा क्यूँ बुझ गया आवारगी
इस दश्त में इक शहर था वो क्या हुआ आवारगी
मोहसिन नक़वी
ग़ज़ल
मैं ख़ुद-कुशी के जुर्म का करता हूँ ए'तिराफ़
अपने बदन की क़ब्र में कब से गड़ा हूँ मैं
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
बरस रही है हरीम-ए-हवस में दौलत-ए-हुस्न
गदा-ए-इश्क़ के कासे में इक नज़र भी नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
सिर्फ़ ज़ाहिर हो गया सरमाया-ए-ज़ेब-ओ-सफ़ा
क्या तअ'ज्जुब है जो बातिन बा-सफ़ा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मिरे हल्क़ा-ए-सुख़न में अभी ज़ेर-ए-तर्बियत हैं
वो गदा कि जानते हैं रह-ओ-रस्म-ए-कज-कुलाही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
अब लुट गया है क्या रहा दोज़ख़ से बढ़ के है
रश्क-ए-बहिश्त कहते थे सब जा-ए-लखनऊ