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ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
अब कोई छू के क्यूँ नहीं आता उधर सिरे का जीवन-अंग
जानते हैं पर क्या बतलाएँ लग गई क्यूँ पर्वाज़ में चुप
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
उमीदें मिल गईं मिट्टी में दौर-ए-ज़ब्त-ए-आख़िर है
सदा-ए-ग़ैब बतला दे हमें हुक्म-ए-ख़ुदा क्या है
चकबस्त बृज नारायण
ग़ज़ल
तुम यूँ ही समझना कि फ़ना मेरे लिए है
पर ग़ैब से सामान-ए-बक़ा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
ख़बर क्या ग़ैब की ग़म-ख़्वार को और याँ ये आलम है
कहा जाता नहीं अपनी ज़बाँ से हाल-ए-ज़ार अपना
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
नूह नारवी
ग़ज़ल
कोई माने न माने इस को लेकिन ये हक़ीक़त है
हम अपनी ज़िंदगी में ग़ैब को शामिल समझते हैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
जिसे ग़ैब आप समझे हैं शहादत जिस को जाने हैं
बिना रखी हैं अपनी दिल लगी की ये घर-आँगन हम
फैज़ दकनी
ग़ज़ल
समझना फ़हम गर कुछ है तबीई से इलाही को
शहादत ग़ैब की ख़ातिर तो हाज़िर है गवाही को