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ग़ज़ल
शब-ए-हिज्राँ के माथे पर सवेरे फिर से रौशन हों
ये रुत गजरे पिरो जाए अगर तुम मिलने आ जाओ
समीना सय्यद
ग़ज़ल
कोई फूलों से ख़ुश्बू को आ के चुने कोई गजरे बुने
ये मोहब्बत है इस में ख़सारा नहीं वो हमारा नहीं
फ़ाख़िरा बतूल
ग़ज़ल
मिस्ल-ए-शाख़-ए-गुल लचकती है कलाई बार बार
गजरे फूलों के हैं या कंगन तुम्हारे हाथ में
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
ग़ज़ल
आप की दिलकश क़ुर्बत पा कर जाग उठी उन की तक़दीर
रंग-बिरंगे फूलों के ये झिलमिल गजरे आप के नाम
सीमा फ़रीदी
ग़ज़ल
हुई पैरहन से भी ख़ुश-दिली कली दिल की और बहुत खिली
कभी तुर्रे से कभी गजरे से कभी बध्धी से कभी हार से
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हम तुम जब भी प्यार करेंगे जान-ओ-दिल सदक़े होंगे
रूहों की ख़ुश्बू में होंगी बाहोँ के गजरे होंगे
एजाज़ गुल
ग़ज़ल
शाख़ शाख़ पर मौसम-ए-गुल ने गजरे से लटकाए थे
मैं ने जिस-दम हाथ बढ़ाया सारे फूल पराए थे