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ग़ज़ल
मिसाल-ए-गंज-ए-क़ारूँ अहल-ए-हाजत से नहीं छुपता
जो होता है सख़ी ख़ुद ढूँड कर साइल से मिलता है
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
वक़्त के हाथों यहाँ क्या क्या ख़ज़ाने लुट गए
एक तेरा ग़म कि गंज-ए-शाईगाँ बनता गया
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
सर-ब-कफ़ गंज-ए-शहीदाँ में चले जाते हैं
इम्तिहाँ से नहीं डरते तिरे फ़रज़ाना-ए-इश्क़
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
आह ओ फ़ुग़ाँ न कर जो खुले 'ज़ौक़' दिल का हाल
हर नाला इक कलीद-ए-दर-ए-गंज-ए-राज़ है
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
तारिक़ मतीन
ग़ज़ल
मार-सियह जुदा कब रहता है गंज-ए-ज़र से
होती नहीं हैं उस के रुख़ से निराली ज़ुल्फ़ें
आफ़ताब शाह आलम सानी
ग़ज़ल
मिरे गुम-गशतगाँ को ले गई मौज-ए-रवाँ कोई
मुझे मिल जाए फिर गंज-ए-गुहर ऐसा नहीं होगा
इरफ़ान सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मुरक़्क़ा' खींचते हैं जो तिरे गंज-ए-शहीदाँ का
तह-ए-शमशीर हर तस्वीर की गर्दन बनाते हैं
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
जो ख़ालिस नेता है वा'दे का पक्का हो नहीं सकता
कि जैसे जेब में गंजे के कंघा हो नहीं सकता
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
हुई जाती है तन्हाई में लज़्ज़त रूह की ज़ाएअ'
लुटा जाता है वीराने में गंज-ए-शाएगाँ मेरा