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ग़ज़ल
मैं फ़ैज़याब-ए-गर्दिश-ए-साग़र नहीं हुआ
क्यूँ ऐ निगाह-ए-दोस्त ये क्यूँ-कर नहीं हुआ
सलाहुद्दीन फ़ाइक़ बुरहानपुरी
ग़ज़ल
जवाब-ए-गर्दिश-ए-साग़र कहाँ से लाएगी 'शाहिद'
समझ कर गर्दिश-ए-दौराँ किसी मय-ख़्वार तक पहुँचे
नरेन्द्र शाहिद
ग़ज़ल
आँख साक़ी की जो पलटे तो पलट जाए जहाँ
गर्दिश-ए-साग़र-ए-मय गर्दिश-ए-दौराँ हो जाए
सूरज नारायण मेहर
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
नश्शा में गुम-कर्दा-राह आया वो मस्त-ए-फ़ित्ना-ख़ू
आज रंग-रफ़्ता दौर-ए-गर्दिश-ए-साग़र हुआ
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
एक मंज़र पर नज़र ठहरे तो ठहरे किस तरह
हम मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-अय्याम ले कर आए हैं