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ग़ज़ल
दुनिया से बे-नियाज़ हूँ ख़ुद से भी बे-ख़बर
क्या क्या करम हैं मुझ पे ग़म-ए-ला-ज़वाल के
क़ादिर सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
शीस मोहम्मद इस्माईल आज़मी
ग़ज़ल
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता है
निकल ऐ सब्र इस घर से कि साहिब-ख़ाना आता है
अमीर मीनाई
ग़ज़ल
ज़िंदगी के नर्म काँधों पर लिए फिरते हैं हम
ग़म का जो बार-ए-गिराँ इनआम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
तू भी अब छोड़ दे साथ ऐ ग़म-ए-दुनिया मेरा
मेरी बस्ती में नहीं कोई शनासा मेरा
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ग़ज़ल
ज़िंदगी की 'आरज़ी ख़ुशियों पे हम मरते नहीं
हम को जीना आ गया दौर-ए-ग़म-ओ-आलाम में
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
है ग़म-ए-हिज्र न अब ज़ौक़-ए-तलब कुछ भी नहीं
आज तुम लौट के आए हो कि जब कुछ भी नहीं
अलीमुल्लाह हाली
ग़ज़ल
है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त 'असद'
हम ने ये माना कि दिल्ली में रहें खावेंगे क्या