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ग़ज़ल
ठहर ठहर कर कौंद रही थी बिजली बाहर जंगल में
ट्रेन रुकी तो सरपट हो गया घोड़ा वक़्त की ताज़िश का
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
सर-कशी करता है यूँ हर आन मेरा नफ़्स-ए-शूम
जिस तरह से दम-ब-दम हो जाए है घोड़ा अलिफ़
जोशिश अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
शोर-ए-दरूँ की तेज़ हवा ने ग़ार का दहाना ज़र्द किया
भूले-भटके ध्यान का घोड़ा आख़िर जिस्म-नवर्द किया