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ग़ज़ल
कभी पाबंदियों से छुट के भी दम घुलने लगता है
दर-ओ-दीवार हूँ जिस में वही ज़िंदाँ नहीं होता
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
सुपुर्द-ए-आब यूँ ही तो नहीं करता हूँ ख़ाक अपनी
अजब मिट्टी के घुलने का मज़ा बारिश में रहता है
अरशद जमाल सारिम
ग़ज़ल
आप के हार की कलियों से ये मिलने का नहीं
दिल है मिट्टी का न घुलने का न मुरझाने का
रियाज़ ख़ैराबादी
ग़ज़ल
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
ख़ुशी बन कर हँसी बन कर दु'आ बन कर महकता है
घुले ख़ुशबू बुज़ुर्गों की जहाँ वो घर महकता है
दिव्या भसीन कोचर
ग़ज़ल
हुए इत्तिफ़ाक़ से गर बहम तो वफ़ा जताने को दम-ब-दम
गिला-ए-मलामत-ए-अक़रिबा तुम्हें याद हो कि न याद हो