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ग़ज़ल
अहद-ए-कम-कोशी में ये भी हौसला मैं ने किया
शहर के सब बंद दरवाज़ों को वा मैं ने किया
आलमताब तिश्ना
ग़ज़ल
मुझ को इशरत-कदा-ए-दहर से क्या काम 'वली'
इन दिनों मैं हूँ और इक गोशा-ए-ग़म-ख़ाना-ए-इश्क़
वली काकोरवी
ग़ज़ल
उम्र करता हूँ बसर गोशा-ए-तन्हाई में
जब से वो रूठ गए, तब से अलग बैठा हूँ
पीर नसीरुद्दीन शाह नसीर
ग़ज़ल
रहने दो हमें कुंज-ए-क़फ़स में कि हमारे
क़िस्मत में यही गोशा-ए-तन्हाई है कम-बख़्त
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कहाँ से लोगे वो सूरत वो कम-सिनी का जमाल
हम अपने गोशा-ए-दिल में छुपाए बैठे हैं
जितेन्द्र मोहन सिन्हा रहबर
ग़ज़ल
क्या हुआ गर वाइ'ज़-ओ-मुल्ला के दिल हैं बे-चराग़
गोशा-ए-मस्जिद में नन्हा सा दिया भी कम नहीं
रईस अमरोहवी
ग़ज़ल
اور کسوت کیسری کر تن چمن میانے چلی ہے آ
رہے کھلنے کوں تیوں دستی او چنپے کی کلی ہے آ