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ग़ज़ल
ख़्वाब ने ये चीख़ कर मुझ से कहा 'यासिर-गुमान’
झाँक कर देखा भी कर बाहर दर-ओ-दीवार से
यासिर गुमान
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
और बा-मा'नी हुआ तश्कीक का पिछ्ला निसाब
क्या कहूँ अहल-ए-यकीं ने क्या गुमाँ पर लिख दिया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
मुझे तो चश्म-ए-गुरेज़ाँ भी इल्तिफ़ात लगी
तिरे सितम पे भी ईसार का गुमाँ गुज़रा
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
आग़ाज़-ए-सब्ज़ा से है जो रुख़्सार पर ग़ुबार
अगले बरस इसे ख़त-ए-गुलज़ार देखना
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
मुद्दत में तुम मिले हो क्यूँ ज़िक्र-ए-ग़ैर आए
मैं अपने साए से भी ख़ल्वत में बद-गुमाँ हूँ
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
गुमाँ होता है जिन मौजों पे इक नक़्श-ए-हुबाबी का
उन्ही सोई हुई मौजों में कुछ तूफ़ान पलते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
रक़ीबाँ की न कुछ तक़्सीर साबित है न ख़ूबाँ की
मुझे नाहक़ सताता है ये इश्क़-ए-बद-गुमाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
दिलों में जब गुमाँ होंगे मकीं आहिस्ता आहिस्ता
तो धुँदला जाएगा नूर-ए-यकीं आहिस्ता आहिस्ता
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
थे कल ये ख़त्त-ए-आरिज़-ए-ख़ूबान-ए-सब्ज़ा-रंग
कहते हैं आज ख़ल्क़ जिन्हें सब्ज़ा-ज़ार-हा
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
वही नश्व-ओ-नुमा-ए-सब्ज़ा है गोर-ए-ग़रीबाँ पर
हवा-ए-चर्ख़-ए-ज़ंगारी जो आगे थी सो अब भी है
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
मेरे शिकवों पे गुमान-ए-तलब-ए-मेह्र-ओ-वफ़ा
मेरी आदत मिरा किरदार नहीं है ऐ दोस्त