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ग़ज़ल
ख़ुद अपनी ज़ात की तश्हीर कू-ब-कू किए जाएँ
ख़ुदा मिले न मिले उस की जुस्तुजू किए जाएँ
मोहसिन एहसान
ग़ज़ल
तुम्हारे ब'अद जो बिखरे तो कू-ब-कू हुए हम
फिर इस के ब'अद कहीं अपने रू-ब-रू हुए हम
फ़हीम शनास काज़मी
ग़ज़ल
कू-ब-कू होता नहीं या दर-ब-दर होता नहीं
ख़ून-ए-नाहक़ किस तरफ़ शाम-ओ-सहर होता नहीं
पंडित अमर नाथ होशियार पुरी
ग़ज़ल
कू-ब-कू सहरा-ब-सहरा दर-ब-दर की बात है
ज़िंदगी क्या है ये रूदाद-ए-सफ़र की बात है