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ग़ज़ल
बरहमी हल्क़ा-बगोशों की उन्हें मंज़ूर है
फूट डलवाती हैं लाखों में तुम्हारी चूड़ियाँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
तपती धूपों में भी आ कर अपनी याद दिलाते हैं
चाँद-नगर के 'इंशा'-साहिब आले जिन का हाला था