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ग़ज़ल
कोई जब छीन लेता है मता-ए-सब्र मिट्टी से
तो अपने आप उग आती है उस की क़ब्र मिट्टी से
ग़ुलाम हुसैन साजिद
ग़ज़ल
गर्द-आलूद दरीदा चेहरा यूँ है माह ओ साल के ब'अद
जैसे फ़लक बारिश से पहले जैसे ज़मीं भौंचाल के ब'अद
तौसीफ़ तबस्सुम
ग़ज़ल
ये कार-गाह-ए-ख़ैर भी है बज़्म-ए-शर भी है
दुनिया क़याम-गाह भी है रहगुज़र भी है