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ग़ज़ल
जोश-ए-वहशत में मुसल्लम हो गया इस्लाम-ए-इश्क़
कूचा-गर्दी से मिरी पूरा हुआ एहराम-ए-इश्क़
अबुल कलाम आज़ाद
ग़ज़ल
क्यूँ असीर-ए-गेसू-ए-ख़म-दार-ए-क़ातिल हो गया
हाए क्या बैठे-बिठाए तुझ को ऐ दिल हो गया
अबुल कलाम आज़ाद
ग़ज़ल
ग़ज़ल की चाहतों अशआ'र की जागीर वाले हैं
तुम्हें किस ने कहा है हम बरी तक़दीर वाले हैं
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
वतन की सर-ज़मीं से इश्क़ ओ उल्फ़त हम भी रखते हैं
खटकती जो रहे दिल में वो हसरत हम भी रखते हैं
जोश मलसियानी
ग़ज़ल
बड़े बूढ़े हमारे जिस को बर्बादी समझते हैं
नई नस्लों के लड़के उस को आज़ादी समझते हैं
कलीम क़ैसर बलरामपुरी
ग़ज़ल
दिल-ए-आज़ादा-रौ में वो तमन्ना थी बयाबाँ की
क़दम रखते ही शक़ होने लगी दीवार ज़िंदाँ की
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
ब-ज़ाहिर तुझ से मिलने का कोई इम्काँ नहीं है
दिलासों से बहलता ये दिल-ए-नादाँ नहीं है
बुशरा फ़र्रुख़
ग़ज़ल
मुक़द्दर ने कहाँ कोई नया पैग़ाम लिक्खा है
अज़ल ही से वरक़ पर दिल के तेरा नाम लिक्खा है